
त्रिलोक जमवाल ने कानून व्यवस्था को लेकर कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया
बिलासपुर ब्यूरो
सदर के विधायक त्रिलोक जमवाल ने कानून व्यवस्था को लेकर कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि वन, खनन, भूमि व ड्रग्स जैसे माफिया के बाद हिमाचल में अब सुपारी माफिया ने भी पांव पसार लिए हैं। उन्होंने अकेले बिलासपुर में पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान हुई मारपीट तथा गोलीकांड की घटनाओं को लेकर पूर्व विधायक बंबर ठाकुर पर भी जमकर निशाने साधे। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं बार-बार एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जब तक सरकार आपराधिक तत्वों को संरक्षण देती रहेगी, ऐसा ही होता रहेगा। बेहतर होगा कि अपना-पराया देखकर कदम उठाने के बजाए सरकार समय रहते सख्त कार्रवाई करे। ऐसा नहीं हुआ तो वार-पलटवार का यह खेल इसी तरह चलता रहेगा। इससे आम लोगों की सुरक्षा भी खतरे में रहेगी।
विधानसभा में लाॅ एंड आॅर्डर विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए त्रिलोक जमवाल ने कहा कि गत 14 मार्च को होली पर्व पर बिलासपुर में दिनदहाड़े गोलियां चलीं। इसमें पूर्व विधायक बंबर ठाकुर घायल हुए। यह घटना बेहद निंदनीय व दुर्भाग्यपूर्ण है। इस पर गंभीर चिंतन की जरूरत है। पिछले साल फरवरी माह में बिलासपुर में रेलवे कंपनी के आॅफिस में झगड़ा हुआ था। यह झगड़ा सुबह उस समय हुआ, जब रेत-बजरी के ट्रक पहंुचते हैं। उनसे 4-5 हजार रुपये कमीशन वसूला जाता रहा है। इसी बात को लेकर दो पक्षों में झगड़ा हुआ और नौबत मारपीट तक पहंुच गई। हैरानी इस बात की है कि झगड़ा शुरू करने वाले पूर्व विधायक के बजाए केवल दूसरे पक्ष के लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। उसके बाद उन्होंने बिलासपुर में कुछ संदिग्ध लोगों की बढ़ती सक्रियता को लेकर जिला व पुलिस प्रशासन को आगाह भी किया, लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया गया। इसका नतीजा यह रहा कि कोर्ट परिसर के बाहर दिनदहाड़े गोलियां चलीं। इसके लिए सुपारी देकर बाहर से शूटर बुलाया गया था। शूटर की पूर्व विधायक और उनके बेटे से कई बार बात हुई। यहां तक कि उसके रहने की व्यवस्था भी उन्हीं ने की थी। पहले पूर्व विधायक के बेटे को पुलिस की मदद से भगा दिया गया। बाद में हाईकोर्ट से जमानत याचिका रद होने पर सरेंडर करवाया गया। पुलिस ने इस घटना से जुड़े कई सबूत भी हटाए। पुलिस जांच में इस घटना का मास्टर माइंड पूर्व विधायक के बेटे को बताया गया। हालांकि वास्तविक मास्टर माइंड पूर्व विधायक ही थे, लेकिन एफआईआर में उनका नाम तक नहीं लिखा गया।
त्रिलोक जमवाल ने कहा कि बिलासपुर में कोर्ट परिसर के पास हुआ गोलीकांड का मामला मुख्यमंत्री ने गत 24 अक्टूबर को सीबीआई को रेफर किया। सीबीआई ने दो क्लेरीफिकेशन मांगीं, लेकिन कुछ अधिकारी उस फाईल को दबाकर बैठ गए। सवाल यह है कि अधिकारियों की इसमें क्या रुचि है। वे किसे बचाना चाहते हैं। यहां तक कि सत्ता पक्ष के कई लोगों ने भी मुख्यमंत्री पर दबाव बनाया कि इस मामले में पूर्व विधायक का नाम नहीं आना चाहिए। यह वही पूर्व विधायक हैं, जिनके खिलाफ लगभग 30 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें हत्या के प्रयास के कई मामले भी शामिल हैं। जहां सरकार के नुमाइंदे ऐसे लोगों को संरक्षण दे रहे हों, वहां कानून व्यवस्था में सुधार की उम्मीद रखना बेमानी है। उन्होंने गोलीकांड के दोनों मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग करते हुए कहा कि इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।